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Thursday, 26 February 2015

अस्थमा के घरेलू उपचार

अस्थमा के घरेलू उपचार

लहसुन दमा के इलाज में काफी कारगर साबित होता है। 30 मिली दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है। 

अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है। सबेरे और शाम इस चाय का सेवन करने से मरीज को फायदा होता है।

दमा रोगी पानी में अजवाइन मिलाकर इसे उबालें और पानी से उठती भाप लें, यह काफी फायदेमंद होता है। 4-5 लौंग लें और 125 मिली पानी में 5 मिनट तक उबालें। इस मिश्रण को छानकर इसमें एक चम्मच शुद्ध शहद मिलाएँ और गरम-गरम पी लें। हर रोज दो से तीन बार यह काढ़ा बनाकर पीने से मरीज को निश्चित रूप से लाभ होता है। 

180 मिमी पानी में मुट्ठीभर सहजन की पत्तियां मिलाकर करीब 5 मिनट तक उबालें। मिश्रण को ठंडा होने दें, उसमें चुटकीभर नमक, कालीमिर्च और नीबू रस भी मिलाया जा सकता है। इस सूप का नियमित रूप से इस्तेमाल दमा उपचार में कारगर माना गया है। 

अदरक का एक चम्मच ताजा रस, एक कप मैथी के काढ़े और स्वादानुसार शहद इस मिश्रण में मिलाएं। दमे के मरीजों के लिए यह मिश्रण लाजवाब साबित होता है। मैथी का काढ़ा तैयार करने के लिए एक चम्मच मैथीदाना और एक कप पानी उबालें। हर रोज सबेरे-शाम इस मिश्रण का सेवन करने से निश्चित लाभ मिलता है। 

दमा का अटैक में सावधानी 
सीधे बैठें और आराम से रहें
तुरंत सुनिश्चित मात्रा में रिलीवर दवा लें
पांच मिनट के लिए रुकें, फिर भी कोई सुधार न हो तो दोबारा उतनी दवा लें।

Sunday, 1 February 2015

स्वास्थ्य » घरेलू नुस्‍खे घरेलू उपाय जो एलर्जी से बचायें

अन्‍य लेख

Friday, 30 January 2015

पेशाब में जलन का घरेलू उपचार

 
 स्‍वास्‍थ के बारे में जानकारी देती है पेशाब का रंग
 
 
 
 
 
 
 
यह पेशाब के जरिये हमारे शरीर से गंदगी को साफ करता हैं। पेशाब अगर साफ़ ना हो तो हमे सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि यह रोग के जन्म लेने कि निशानी है। अगर पेशाब पीला हो तो ज्यादा चिंता करने कि कोई जरुरत नहीं है, लेकिन अगर यह एक दिन से ज्यादा हो तो स्वास्थ समस्या होने लग जाएँगी। अक्सर हमे यह बताया जाता है कि हमे खूब सारा पानी पीना चाहिए जिससे ऐसी छोटो छोटी परेशानी खत्म हो जाएँ। लेकिन अगर फिर भी पेशाब का पीला पन नहीं जा रहा है तो तुरंत अपने चिकित्सक से मिले। पेशाब का रंग हमारे स्वास्थ्य के बारे में क्या बताता है और यह कौन से रोगों के संकेत हैं आइये जाने। पेशाब में जलन का घरेलू उपचार स्‍वास्‍थ के बारे में जानकारी देती है पेशाब का रंग 
 1. हल्का पीला : यह रंग यह बताता है कि आप बिल्कुल स्वस्थ्य हैं, और आपका शरीर बहुत अच्छे से काम कर रहा है। यह रंग तभी होता है जब कोई व्यक्ति बहुत ज्यादा पानी पीता है।
 2. पीला : अगर आपके पेशाब का रंग पीला है तो इसका मतलब है कि आपको पानी की कमी है। इससे बचने के लिए आपको खूब सारा पानी पीना शुरू कर देना चाहिए।
 3. गाढ़ा पिला : अगर आपकी पेशाब का रंग गेहरा पिला है तो यह दवाओं के कारण हो सकता है। इसलिए तुरंत अपने चिकित्सक से मिले क्यों कि हो सकता है यह लिवर की परेशानी या हेपेटाइटिस हो।
 4. दूधिया सफेद : यह रंग पेशाब में बैक्टीरिया की वजह से होता है। और यह मूत्र मार्ग के संक्रमण या गुर्दे में पथरी के संकेत भी हो सकता है।
 5. लाल या गुलाबी: पेशाब का रंग लाल या गुलाबी इसलिए हो सकता है कि आपने चुकंदर और ब्लैकबेरी खाया हो। और या फिर अगर अधिक गंभीर हो तो पेशाब में लाल या गुलाबी रंग का आना खून भी हो सकता है। यह आपके यरनेरी सिस्टम, गुर्दे में पथरी या बहुत ज्यादा व्यायाम की वजह से लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने का कारण भी होसकता है। 
 6. नारंगी: पेशाब से जुड़ी समस्या को कम करने के लिए इस्तेमाल दवा नारंगी पेशाब पैदा कर सकती है। इसके अलावा, गाजर या गाजर का रस पीने से भी नारंगी रंग पेशाब में आता है।
 7. नीली या हरी : पेशाब से जुड़ी परेशानियों कि कई सारी दवाओं में डाई पायी जाती है जिसकी वजह से पेशाब का रंग नीला या हरा हो जाता है। नीला या हरा तब भी होजाता है अगर आप ऐसा खाना खाए जिसमें आर्टफिशल रंग पड़ा हो।
और जाने

आंवले के प्रयोग use of amla

आंवले के प्रयोग - 10 (अंतिम भाग)
"बिस्तर पर पेशाब करना : -* 10 ग्राम आंवला और 10 ग्राम काला जीरा लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में 10 ग्राम मिश्री पीसकर मिला लें। यह 2-2 ग्राम चूर्ण रोजाना पानी के साथ खाने से बच्चे का बिस्तर में पेशाब करना बंद हो जाता है।
* आंवले को बहुत अच्छी तरह से बारीक पीसकर कपड़े में छानकर चूर्ण बना लें। यह 3-3 ग्राम चूर्ण रोजाना शहद में मिलाकर बच्चों को सुबह और शाम चटाने से बच्चे बिस्तर में पेशाब करना बंद कर देते हैं।
* आंवले का चूर्ण और काला जीरा बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें। तैयार चूर्ण की आधी मात्रा में मिश्री मिलाकर, 1-1 चम्मच दिन में 3 बार, 1 हफ्ते तक नियमित रूप से खिलाएं।
योनिकंद : -आंवले की गुठली, बायविंडग, हल्दी, रसौत और कायफल को पीसकर चूर्ण बनाकर शहद में मिलाकर योनि में रख लें, फिर त्रिफले के काढ़े में शहद डालकर योनि को धोने से योनि कंद की बीमारी समाप्त हो जाती है।
"भ्रम रोग : -* लगभग 3-3 ग्राम की मात्रा में आंवला, हरड़, बहेड़ा को लेकर बारीक पीसकर और छानकर रात को 3 ग्राम शहद के साथ चाटें और सुबह 3 ग्राम अदरक के रस और 6 ग्राम गुड़ के साथ मिलाकर खाने से भ्रम रोग खत्म हो जाता है।
* लगभग 6 ग्राम आंवले और इतनी ही मात्रा में धनिये को कुचलकर रात में पानी में भिगोकर रख दें और सुबह इसके मैल को छानकर इसमें 20 ग्राम मिश्री मिलाकर रोजाना पीने से पित्त के कारण पैदा होने वाला भ्रम रोग दूर हो जाता है।
* आंवले का शर्बत रोजाना सुबह और शाम को रोगी को देने से पित्त द्वारा होने वाला भ्रम का रोग खत्म हो जाता है।
"पेशाब का अधिक आना (बहुमूत्र) : -* लगभग 3.5 ग्राम आंवला के फूल या पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) का चूर्ण खाने से पेशाब के साथ-साथ ज्यादा पेशाब में ज्यादा मीठा आने का रोग समाप्त हो जाता है।
* आंवले के रस में 6 ग्राम शहद मिलाकर पीने से बहुमूत्र रोग (बार-बार पेशाब आना) मिट जाता है।
"मूत्र (पेशाब) की बीमारी : -* 2 चम्मच आंवले का रस और 1 कप पानी, दोनों को मिलाकर एक सप्ताह तक सुबह के समय खायें।
* एक चम्मच आंवले का रस और 1 गिलास गन्ने का रस, दोनों को मिलाकर खाने से पेशाब खुल जाता है।
"योनि रोग : -* आंवले को निचोड़कर 20 ग्राम रस में खांड मिलाकर खाली पेट सुबह के समय 7 दिनों तक लगातार पीने से योनि में बदबू आना बंद हो जाता है।
* आंवले के रस को थोड़ी-सी मात्रा में लेकर प्रतिदिन स्त्री को पिलाने से योनि में होनी वाली जलन समाप्त हो जाती है।
* आंवले के रस में खांड को मिलाकर सेवन करने से योनि में होने वाली जलन शांत हो जाती है।
* आंवलों के रस में चीनी मिलाकर प्रतिदिन पीने से योनि की जलन और पीड़ा नष्ट हो जाती है।
"अपरस (चर्म) के रोग में : -4 ग्राम सूखे आंवले का चूर्ण और 2 ग्राम हल्दी का चूर्ण थोड़े दिनों तक पानी के दूध के साथ रोजाना दो बार पीने से खून साफ हो जाता है और त्वचा के दूसरे रोग खाज-खुजली आदि दूर होते हैं।
"दिल की धड़कन : -* आंवले का चूर्ण आधा चम्मच लेकर उसमें थोड़ी-सी मिश्री का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें।
* आंवले का मुरब्बा या शर्बत दिल की तेज धड़कन को सामान्य बनाता है।
खूबसूरत दिखना : -आंवले को पीसकर पानी में भिगोकर चेहरे पर उबटन की तरह मलने से चेहरे की खूबसूरती बढ़ती है।
उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) : -* आंवले का मुरब्बा खाने से उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) में लाभ होता है। एक-एक आंवला सुबह और शाम खाएं।
* आंवले का चूर्ण एक चम्मच, गिलोय का चूर्ण आधा चम्मच तथा दो चुटकी सोंठ। तीनों को मिलाकर गर्म पानी से सेवन करें।
* आंवले का चूर्ण एक चम्मच, सर्पगंधा तीन ग्राम, गिलोय का चूर्ण एक चम्मच। तीनों को मिलाकर दो खुराक करें और सुबह-शाम इसका इस्तेमाल करें।
* आंवले को खाते रहने से अचानक हृदयगति रुकने की सम्भावना नहीं रहती और न ही उच्च रक्तचाप का रोग होता है।
"हृदय की निर्बलता (कमजोरी : -* आधा भोजन करने के बाद हरे आंवलों का रस 35 ग्राम, आधा गिलास पानी में मिलाकर पी लें, फिर आधा भोजन करें। इस प्रकार 21 दिन सेवन करने से हृदय तथा मस्तिष्क की दुर्बलता दूर होकर स्वास्थ्य सुधर जाता है।
* आंवले का मुरब्बा खाकर प्रतिदिन दूध पीने से शारीरिक शक्ति विकसित होने से हृदय की निर्बलता नष्ट होती है।
* आंवले का 3 ग्राम चूर्ण रात्रि के समय 250 ग्राम दूध के साथ सेवन करने से हृदय की निर्बलता नष्ट होती है।
* सूखा आंवला तथा मिश्री 50-50 ग्राम मिलाकर खूब कूट-पीस लें। छ: ग्राम औषधि प्रतिदिन एक बार पानी के साथ लेने से कुछ दिनों में हृदय की धड़कन तथा अन्य रोग सामान्य हो जाते हैं।
घबराहट या बेचैनी : -10 ग्राम आंवले के चूर्ण को इतनी ही मात्रा में मिश्री के साथ सुबह और शाम खाने से घबराहट दूर हो जाती है।
त्वचा (चर्म) रोग : -* 3 चम्मच पिसे हुए आंवले के रस को रात में एक गिलास पानी में भिगोकर रख दें। सुबह उस पानी को छानकर उसमें 4 चम्मच शहद मिलाकर पीने से चमड़ी के सारे रोग दूर हो जाते हैं।
* आंवले के रस में शहद मिलाकर पीने से सभी तरह के चमड़ी के रोगों में लाभ होता है।
* आंवले का रस, कालीमिर्च और गंधक को बराबर की मात्रा में लेकर उसमें दो गुना घी मिला लें और चमड़ी पर लगायें। उसके बाद हल्की धूप में बैठे। इससे खुजली ठीक हो जाती है।
हदय रोग : -* दिल में दर्द शुरू होने पर आंवले के मुरब्बे में तीन-चार बूंद अमृतधारा सेवन करें।
* भोजन करने के बाद हरे आंवले का रस 25-30 ग्राम रस ताजे पानी में मिलाकर सेवन करें।
* एक चम्मच सूखे आंवले का चूर्ण फांककर ऊपर से लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग दूध पी लें।
* आंवले में विटामिन-सी अधिक है। इसके मुरब्बे में अण्डे से भी अधिक शक्ति है। यह अत्यधिक शक्ति एवं सौन्दर्यवर्द्धक है। आंवले के नियमित सेवन से हृदय की धड़कन, नींद का न आना तथा रक्तचाप आदि रोग ठीक हो जाते हैं। रोज एक मुरब्बा गाय के दूध के साथ लेने से हृदय रोग दूर रहता है। हरे आंवलों का रस शहद के साथ, आंवलों की चटनी, सूखे आंवला की फंकी या मिश्री के साथ लेने से सभी हृदय रोग ठीक होते हैं।
* सूखा आंवला और मिश्री समान भाग पीस लें। इसकी एक चाय की चम्मच की फंकी रोजाना पानी से लेने से हृदय के सारे रोग दूर हो जाते हैं।
* आंवले का मुरब्बा दूध से लेने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है व किसी भी प्रकार के हृदय-विकार नहीं होते हैं।
"
निम्न रक्तचाप (लो ब्लड प्रेशर) : -* आंवलों के 20 ग्राम रस में 10 ग्राम मधु मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से निम्न रक्तचाप में बहुत लाभ होता है।
* आंवले या सेब का मुरब्बा प्रतिदिन खाने से कुछ सप्ताह में लाभ होने लगता है।
क्रोध : -एक से दो की संख्या में आंवले का मुरब्बा रोजाना खाने से जलन, चक्कर के साथ साथ क्रोध भी दूर हो जाता है।
पीलिया (पांडु) का रोग : -* 10 ग्राम हरे आंवले के रस में थोड़ा-सा गन्ने का रस मिलाकर सेवन करें। जब तक पीलिया का रोग खत्त्म न हो जाए, तब तक उसे बराबर मात्रा में पीते रहें।
* हरे आंवले का रस शहद के साथ कुछ दिनों तक सेवन करने से लाभ होता है।
* छाछ के साथ आंवले का चूर्ण 1 चम्मच दिन में 3 बार रोजाना सेवन करें।
* आंवले और गन्ने का ताजा निकाला हुआ रस आधा-आधा कप और 2 चम्मच शहद सुबह-शाम लगातार पीने से 2-3 महीने में पीलिया रोग दूर हो जाता है। इससे जीर्ण ज्वर या अन्य कारणों से उत्पन्न हुआ पांडु रोग (पीलिया) भी समाप्त हो जाता है।
* लगभग 3 ग्राम चित्रक के चूर्ण को आंवलो के रस की 3-4 भावना देकर गाय के घी के साथ रात में चाटने से पीलिया रोग दूर होता है।
* आंवले का अर्क (रस) पिलाने से कामला रोग में लाभ होता है।
* लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग लौह भस्म के साथ 1-2 आंवले का सेवन करने से कामला, पांडु और खून की कमी आदि रोगों में अत्यंत लाभ होता है।
कुष्ठ (कोढ़) : -* 10-10 ग्राम कत्था और आंवला को लेकर काढ़ा बना लें। काढ़ा के पक जाने पर उसमें 10 ग्राम बाबची के बीजों का चूर्ण शहद के साथ मिलाकर रोजाना पीने से सफेद कोढ़ भी कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
* कत्थे की छाल, आंवला और बावची का काढ़ा बनाकर पीने से सफेद कोढ़ ठीक हो जाता है।
* 1 चम्मच आंवले के चूर्ण की सुबह, शाम फंकी लें।
* आंवला के रस को सनाय के साथ मिलाकर खाने से कोढ़ ठीक हो जाता है।
* खैर की छाल और आंवला के काढ़े में बाबची का चूर्ण मिलाकर पीने से सफेद कोढ़´ ठीक हो जाता है।
* आंवले और नीम के पत्ते को समान मात्रा में लेकर महीन चूर्ण कर रख लें, इसे 2 से 6 ग्राम तक या 10 ग्राम तक रोजाना सुबह-सुबह शहद के साथ चाटने से भयंकर गलित कुष्ठ में भी शीघ्र लाभ होता है।
"विसर्प (फुंसियों का दल बनना) : -* अनन्नास का गूदा निकालकर फुंसियों पर लगाने से फुंसिया ठीक हो जाती हैं। इसका रस रोजाना पीने से शरीर की बीमार कोशिकाएं ठीक हो जाती हैं।
* आंवले के 10-20 ग्राम रस में 10 ग्राम घी मिलाकर दिन में 2-3 बार पिलाने से विसर्प में राहत मिलती है।
* आंवला, बहेड़ा, हरड़, पद्याख, खस, लाजवन्ती, कनेर की जड़, जवासा, और नरसल की जड़ को पीसकर मिलाकर लेप की तरह से लगाने से कफज के कारण होने वाला विसर्प नाम का रोग ठीक हो जाता है।
खसरा : -* नागरमोथा, धनिया, गिलोय, खस और आंवला को बराबर मात्रा में लेकर और पीसकर बारीक चूर्ण बना लें। 5 ग्राम चूर्ण 300 ग्राम पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को छानकर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बच्चे को पिलाने से खसरा में बहुत आराम आता है।
* खसरा निकलने के बाद शरीर में जलन या खुजली हो तो सूखे आंवलों को पानी में उबालकर ठंडा होने के बाद इससे शरीर को रोजाना साफ करें। इससे खसरे की खुजली और जलन दूर होती है।
सिर में दर्द : -* लगभग 5 ग्राम आंवला और 10 ग्राम धनिये को मिलाकर कूटकर रात को किसी मिट्टी के बर्तन में 200 ग्राम पानी में मिलाकर रख दें। सुबह इस मिश्रण को कपड़े द्वारा छानकर पीने से गर्मी के दिनों में धूप में घूमने के कारण होने वाला सिर दर्द खत्म हो जाता है।
* आंवले का शर्बत पीने से गर्मी के कारण होने वाला सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
* आंवले के पानी से सिर की मालिश करने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
सफेद दाग : -20-20 ग्राम खादिरसार (कत्था) और आंवला को लेकर 400 ग्राम पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े में 5 ग्राम बावची का चूर्ण मिलाकर खाने से श्वेत कुष्ठ (सफेद दाग) ठीक हो जाता है।
बच्चों का फोड़ा : -आंवलों की राख घी में मिलाकर लेप करने से बच्चों को होने वाला `फोड़ा´ ठीक हो जाता है।
चेहरे की सुंदरता : -रोजाना सुबह और शाम चेहरे पर किसी भी तेल की मालिश कर लें। रात को 1 कांच का गिलास पानी से भरकर उसमें दो चम्मच पिसा हुआ आंवला भिगो दें और सुबह उस पानी को छानकर चेहरे को रोजाना इस पानी से धोंयें। इससे चेहरे की झुर्रिया (चेहरे की सिलवटें) और झांइयां दूर हो जाती हैं।
त्वचा का प्रसाधन : -आंवले के मुरब्बा का रोजाना दो से तीन बार सेवन करने से त्वचा का रंग निखरता है।
याददास्त कमजोर होना : -* रोजाना सुबह आंवले के मुरब्बे का सेवन करने से याददास्त मजबूत होती है और बढ़ती भी है।
* लगभग 30 ग्राम आंवले के रस को भोजन करते समय भोजन के बीच में ही पानी में मिलाकर पीयें, और इसके बाद फिर अपना भोजन पेट भर कर खायें। ऐसा लगभग 21 दिन तक करने से हृदय की कमजोरी के साथ ही साथ दिमाग की कमजोरी भी दूर हो जाती है, और शरीर भी हष्टपुष्ट बना रहता है।
बच्चों के रोग : -अगर बच्चे के शरीर पर फुन्सियां हो, तो रेवन्दचीनी की लकड़ी को पानी में घिसकर लेप करें। अगर फोड़ा हो, तो आंवले की राख को घी में मिलाकर लेप करें। अगर फोड़े-फुन्सी बहुत हो तो आंवलों को दही में भिगोकर लगायें या नीम की छाल (खाल) पानी में घिस कर लगायें।
कण्ठमाला के रोग में : -सर्पगन्धा, आंवला, आशकंद और अर्जुन की छाल को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 2-2 ग्राम दिन में सुबह और शाम सेवन करने से गलगण्ड (गले की गांठें) ठीक हो जाता है।
शरीर को शक्तिशाली और ताकतवर बनाना : -* लगभग 10 ग्राम की मात्रा में हरे आंवला और लगभग इतनी ही मात्रा में शहद लेकर इनको मिलाकर एक साथ खाने से मनुष्य के वीर्य बल में वृद्धि होती है। आंवलों के मौसम में इसका सेवन रोजाना सुबह के समय करें। इसका सेवन लगभग 1 से 2 महीने तक करना चाहिए।
* बराबर मात्रा में आंवले का चूर्ण, गिलोय का रस, सफेद मूसली का चूर्ण, गोखरू का चूर्ण, तालमखाना का चूर्ण, अश्वगंधा का चूर्ण, शतावरी का चूर्ण, कौंच के बीजों का चूर्ण और मिश्री का चूर्ण लेकर इनका मिश्रण बना लें। अब इस मिश्रण को रोजाना सुबह और शाम को लगभग 10 से 15 ग्राम की मात्रा में फांककर ऊपर से हल्का गर्म दूध पीने से मनुष्य के संभोग करने की शक्ति का विकास होता है। इसको लगातार 3 या 4 महीने तक फायदा होने तक खाना चाहिए।"
श्लेश्म पित्त : -लगभग 10 ग्राम आंवला लेकर उसको रात को सोते समय पानी में भिगोकर रख दें और सुबह उठकर इनको मसलकर छान लें। अब इस जल में मिश्री और जीरे के चूर्ण को मिलाकर पीने से सभी प्रकार के पित्त रोग ठीक हो जाते
गले के रोग : -* सूखे आंवले के चूर्ण को गाय के दूध में मिलाकर पीने से स्वरभेद (गले का बैठ जाना) ठीक हो जाता है।
* आंवले के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारे करने से गले के कई सारे रोग दूर हो जाते हैं।

Friday, 23 January 2015

अस्वगंधा के उपयोग


www.patanjaliayurved.netअश्वगंधा एक बलवर्धक जड़ी है जिसके गुणों को आधुनिक चिकित्सकों ने भी माना है। इसका पौधा झाड़ीदार होता है। जिसकी ऊंचाई आमतौर पर 3−4 फुट होती है। औषधि के रूप में मुख्यतः इसकी जड़ों का प्रयोग किया जाता है। कहीं−कहीं इसकी पत्तियों का प्रयोग भी किया जाता है। इसके बीज जहरीले होते हैं। असगंध बहमनेवर्री तथा बाराहरकर्णी इसी के नाम हैं।
अश्वगंधा या वाजिगंधा का अर्थ है अश्व या घोड़े की गंध। इसकी जड़ 4−5 इंच लंबी, मटमैली तथा अंदर से शंकु के आकार की होती है, इसका स्वाद तीखा होता है। चूंकि अश्वगंधा की गीली ताजी जड़ से घोड़े के मूत्र के समान तीव्र गंध आती है इसलिए इसे अश्वगंधा या वाजिगंधा कहते हैं। इस जड़ी को अश्वगंधा कहने का दूसरा कारण यह है कि इसका सेवन करते रहने से शरीर में अश्व जैसा उत्साह उत्पन्न होता है।
अश्वगंधा की जड़ में कई एल्केलाइड पाए जाते हैं, जैसे ट्रोपीन, कुस्कोहाइग्रीन, एनाफैरीन, आईसोपेलीन, स्यूडोट्रोपीन आदि। इनकी कुल मात्र 0.13 से 0.31 प्रतिशत तक हो सकती है। इसके अतिरिक्त जड़ों में स्टार्च, शर्करा, ग्लाइकोसाइडस−होण्टि्रया कान्टेन तथा उलसिटॉल विदनॉल पाए जाते हैं। इसमें बहुत से अमीनो अम्ल मुक्त अवस्था में पाए जाते हैं इसकी पत्तियों में एल्केलाइड्स, ग्लाइकोसाइड्स एवं मुक्त अमीनो अम्ल पाए जाते हैं। इसके तने में प्रोटीन कैल्शियम, फास्फोरस आदि पाए जाते हैं।
अश्वगंधा मुख्यतः एक बलवर्धक रसायन है सभी प्रकार के जीर्ण रोगों और क्षय रोग आदि के लिए इसे उपयुक्त माना गया है। अश्वगंधा शरीर की बिगड़ी हुए व्यवस्था को ठीक करने का कार्य भी करती है। एक अच्छा वातशामक होने का कार्य भी करती है। एक अच्छा वातशामक होने के कारण यह थकान का निवारण भी करती है। यह हमारे जीव कोषों की, अंग−अवयवों की आयु वृद्धि भी करती है और असमय बुढ़ापा आने से रोकती है। सूखे रोग के उपचार के लिए इसके तने की सब्जी खिलाई जाती है। प्रसव के बाद महिलाओं को बल देने के लिए भी अश्वगंधा का प्रयोग किया जाता है।
अश्वगंधा के चूर्ण की एक−एक ग्राम मात्रा दिन में तीन बार लेने पर शरीर में हीमोग्लोबिन लाल रक्त कणों की संख्या तथा बालों का काला पन बढ़ता है।
कफ तथा वात संबंधी प्रकोपों को दूर करने की शक्ति भी इसमें होती है। इसकी जड़ से सिद्ध तेल जोड़ों के दर्द को दूर करता है। स संबंधी रोगों के निदान के लिए अश्वगंधा क्षार अथवा चूर्ण को शहद तथा घी के साथ दिया जाता है। कैंसर, जीर्ण व्याधि, क्षय रोग आदि में दुर्बलता तथा दर्द दूर करने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।