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Friday, 23 January 2015

अस्वगंधा के उपयोग


www.patanjaliayurved.netअश्वगंधा एक बलवर्धक जड़ी है जिसके गुणों को आधुनिक चिकित्सकों ने भी माना है। इसका पौधा झाड़ीदार होता है। जिसकी ऊंचाई आमतौर पर 3−4 फुट होती है। औषधि के रूप में मुख्यतः इसकी जड़ों का प्रयोग किया जाता है। कहीं−कहीं इसकी पत्तियों का प्रयोग भी किया जाता है। इसके बीज जहरीले होते हैं। असगंध बहमनेवर्री तथा बाराहरकर्णी इसी के नाम हैं।
अश्वगंधा या वाजिगंधा का अर्थ है अश्व या घोड़े की गंध। इसकी जड़ 4−5 इंच लंबी, मटमैली तथा अंदर से शंकु के आकार की होती है, इसका स्वाद तीखा होता है। चूंकि अश्वगंधा की गीली ताजी जड़ से घोड़े के मूत्र के समान तीव्र गंध आती है इसलिए इसे अश्वगंधा या वाजिगंधा कहते हैं। इस जड़ी को अश्वगंधा कहने का दूसरा कारण यह है कि इसका सेवन करते रहने से शरीर में अश्व जैसा उत्साह उत्पन्न होता है।
अश्वगंधा की जड़ में कई एल्केलाइड पाए जाते हैं, जैसे ट्रोपीन, कुस्कोहाइग्रीन, एनाफैरीन, आईसोपेलीन, स्यूडोट्रोपीन आदि। इनकी कुल मात्र 0.13 से 0.31 प्रतिशत तक हो सकती है। इसके अतिरिक्त जड़ों में स्टार्च, शर्करा, ग्लाइकोसाइडस−होण्टि्रया कान्टेन तथा उलसिटॉल विदनॉल पाए जाते हैं। इसमें बहुत से अमीनो अम्ल मुक्त अवस्था में पाए जाते हैं इसकी पत्तियों में एल्केलाइड्स, ग्लाइकोसाइड्स एवं मुक्त अमीनो अम्ल पाए जाते हैं। इसके तने में प्रोटीन कैल्शियम, फास्फोरस आदि पाए जाते हैं।
अश्वगंधा मुख्यतः एक बलवर्धक रसायन है सभी प्रकार के जीर्ण रोगों और क्षय रोग आदि के लिए इसे उपयुक्त माना गया है। अश्वगंधा शरीर की बिगड़ी हुए व्यवस्था को ठीक करने का कार्य भी करती है। एक अच्छा वातशामक होने का कार्य भी करती है। एक अच्छा वातशामक होने के कारण यह थकान का निवारण भी करती है। यह हमारे जीव कोषों की, अंग−अवयवों की आयु वृद्धि भी करती है और असमय बुढ़ापा आने से रोकती है। सूखे रोग के उपचार के लिए इसके तने की सब्जी खिलाई जाती है। प्रसव के बाद महिलाओं को बल देने के लिए भी अश्वगंधा का प्रयोग किया जाता है।
अश्वगंधा के चूर्ण की एक−एक ग्राम मात्रा दिन में तीन बार लेने पर शरीर में हीमोग्लोबिन लाल रक्त कणों की संख्या तथा बालों का काला पन बढ़ता है।
कफ तथा वात संबंधी प्रकोपों को दूर करने की शक्ति भी इसमें होती है। इसकी जड़ से सिद्ध तेल जोड़ों के दर्द को दूर करता है। स संबंधी रोगों के निदान के लिए अश्वगंधा क्षार अथवा चूर्ण को शहद तथा घी के साथ दिया जाता है। कैंसर, जीर्ण व्याधि, क्षय रोग आदि में दुर्बलता तथा दर्द दूर करने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।

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